ई. श्रीधरन जीवनी - Biography of E. Sreedharan in Hindi Jivani Published By : Jivani.org ई. श्रीधरन का जन्म 12 जून 1932 को केरल के पलक्कड़ में पत्ताम्बी नामक स्थान पर हुआ था। उनके परिवार का सम्बन्ध पलक्कड़ के ‘करुकपुथुर’ से है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पलक्कड़ के ‘बेसल इवैंजेलिकल मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल’ से हुई जिसके बाद उन्होंने पालघाट के विक्टोरिया कॉलेज में दाखिला लिया। उसके पश्चात उन्होंने आन्ध्र प्रदेश के काकीनाडा स्थित ‘गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज’ में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने ‘सिविल इंजीनियरिंग’ में डिग्री प्राप्त की। ई श्रीधरन ने बहुत कम समय के भीतर दिल्ली मेट्रो के निर्माण का कार्य किसी सपने की तरह बेहद कुशलता और श्रेष्ठता के साथ पूरा कर दिखाया है। देश के अन्य कई शहरों में भी मेट्रो सेवा शुरु करने की तैयारी है, जिसमें श्रीधरन की मेधा, योजना और कार्यप्रणाली ही मुख्य निर्धारक कारक होंगे। केरलवासी श्रीधरन की कार्यशैली की सबसे बड़ी खासियत है एक निश्चित योजना के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर काम को पूरा कर दिखाना। समय के बिलकुल पाबंद श्रीधरन की इसी कार्यशैली ने भारत में सार्वजनिक परिवहन को चेहरा ही बदल दिया। 1963 में रामेश्वरम और तमिलनाडु को आपस में जोड़ने वाला पम्बन पुल टूट गया था। रेलवे ने उसके पुननिर्माण के लिए छह महीन का लक्ष्य तय किया, लेकिन उस क्षेत्र के इंजार्च ने यह अवधि तीन महीने कर दी और जिम्मेदारी श्रीधरन को सौंपी गई। श्रीधरन ने मात्र 45 दिनों के भीतर काम करके दिखा दिया।[2] भारत की पहली सर्वाधिक आधुनिक रेलवे सेवा कोंकण रेलवे के पीछे ईश्रीधरन का प्रखर मस्तिष्क, योजना और कार्यप्रणाली रही है। भारत की पहली मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो की योजना भी उन्हीं की देन है। आधुनिकता के पहियों पर भारत को चलाने के लिए सबकी उम्मीदें श्रीधरन पर टिकी है। इसलिए तो सरकार ने उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए पद्श्री और पद्म भूषण सम्मानों से सम्मानित किया। टाइम पत्रिका ने तो उन्हें 2003 में एशिया का हीरो बना दिया। 2011 में ई. श्रीधरन के उत्तराधिकारी के रूप में मंगू सिंह की नियुक्ति की गई। o एक व्याख्याता के रूप में कैरियर थोड़े समय के लिए, श्रीधरन ने सरकारी पॉलिटेकनिक, कोझीकोड में सिविल इंजीनियरिंग में एक प्राध्यापक के रूप में काम किया और एक वर्ष में एक शिक्षु के रूप में बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में काम किया। वह बाद में भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईईएस) में शामिल हुए, 1 9 53 में यूपीएससी द्वारा आयोजित इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा में समाशोधन के बाद उनका पहला काम दक्षिणी रेलवे में दिसंबर 1 9 54 में प्रोबेशरीरी सहायक अभियंता के रूप में था। o परिवार श्रीधरन की पत्नी राधा श्रीधरन है इस युगल के चार बच्चे हैं: ज्येष्ठ पुत्र रमेश टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में उपाध्यक्ष हैं; बेटी शांति मेनन, एक अन्य बेटे अच्युत मेनन, बेंगलुरु में एक स्कूल चलाती है, ब्रिटेन में एक डॉक्टर है। उनका सबसे छोटा बेटा एम। कृष्णदास, जो एबीबी इंडिया लिमिटेड में काम करता है o ई. श्रीधरन की सफलता के मंत्र श्रीधरन काम करने वालों की पेशेवर योग्यता को लेकर कोई समझौता नहीं करते, लिहाजा उनके द्वारा हाथ में लिया गया कोई भी प्रोजेक्ट असफल या कम गुणवत्ता वाला साबित नहीं हुआ। जब भी जरूरत पड़ी, उन्होंने कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण दिलाया। उन्होंने दिल्ली मेट्रो के निर्माण कार्य में लगे लोगों को बेहतर प्रशिक्षण के लिए विदेश भी भेजा, क्योंकि उनका मानना है कि किसी भी काम की सफलता अंतत: उसे करने वाले लोगों की योग्यता पर ही निर्भर करती है। श्रीधरन की कामयाबी की सबसे बड़ी वजहों में से एक है उनकी ईमानदारी। उनका मानना है कि काम केवल समय पर पूरा होना ही काफी नहीं है, बल्कि वह स्तरीय भी होना चाहिए और इसके लिए ईमानदारी बहुत जरूरी है, तभी पूर्ण रूप से सफलता मिलेगी। वह कहते हैं, ‘हम पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के मामले में कभी समझौता नहीं करते।’ श्रीधरन का कहना है, ‘हम इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि केवल सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ही काफी नहीं है। पारदर्शिता, कार्यक्षमता, जवाबदेही, सर्विस-ओरिएंटेशन और सभी घटकों की सहभागिता भी उतनी ही महवपूर्ण है।’ इस बात को वह सिर्फ कहते ही नहीं, अमल में भी लाते हैं। उन्होंने अब तक के अपने सभी प्रोजेक्टों में उससे जुड़े सभी पक्षों की सहभागिता को सुनिश्चित किया है और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित किया है। यह भी उनकी कामयाबी का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है। सम्मान 2013 - जापान का राष्ट्रीय सम्मान - ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन- गोल्ड एंड सिल्वर स्टार 2008 - पद्म विभूषण 2001 - पद्म श्री उन्होंने 1995 और 2012 के बीच दिल्ली मेट्रो के प्रबंध निदेशक के रूप में कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो के निर्माण में अपने नेतृत्व के साथ भारत में सार्वजनिक परिवहन का सामना करने के लिए श्रेय दिया। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 2001 में, पद्म विभूषण ने 2008 में, फ्रेंच सरकार द्वारा 2005 में शेवालियर डे ला लाओ गियोन डी'हेनीर को 2003 में टाइम्स पत्रिका द्वारा एशिया के नायकों में से एक का नाम दिया गया था। हाल ही में श्रीधरन को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की- चंद्रमा तीन वर्षों की अवधि के लिए निरंतर परिवहन (एचएलएजी-एसटी) पर संयुक्त राष्ट्र के उच्च स्तरीय सलाहकार समूह पर काम करने के लिए। वह माता वैष्णो देवी शाइन बोर्ड के सदस्य भी हैं सम्मान और पुरस्कार o रेलवे मंत्री का पुरस्कार, 1963 o भारत सरकार द्वारा पद्म श्री, 2001 o ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ द्वारा ‘मैन ऑफ़ द इयर’, 2002 o श्री ओम प्रकाश भसीन अवार्ड फॉर प्रोफेशनल एक्सीलेंस इन इंजीनियरिंग, 2002 o सी.आई.आई. ज्युरर्स अवार्ड फॉर लीडरशिप इन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, 2002-2003 o टाइम पत्रिका द्वारा ‘ओने ऑफ़ एसिआज हीरोज’, 2003 o आल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन अवार्ड फॉर पब्लिक एक्सीलेंस, 2003 o आई.आई.टी दिल्ली द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ़ साइंस’ o भारत शिरोमणि अवार्ड, 2005 o नाइट ऑफ़ द लीजन ऑफ़ हॉनर, 2005 o सी.एन.एन-आई.बी.एन. द्वारा ‘इंडियन ऑफ़ द इयर 2007’, 2008 o भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण, 2008 o राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी कोटा द्वारा ‘डी लिट.’ की उपाधि, 2009 o आई.आई.टी रूरकी द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ़ फिलोसोफी’, 2009 o श्री चित्र थिरूनल नेशनल अवार्ड, 2012 o एस.आर जिंदल प्राइज, 2012 o टी.के.एम. 60 प्लस अवार्ड फॉर लाइफटाइम अचीवमेंट, 2013 o महामाया टेक्निकल यूनिवर्सिटी द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ़ साइंस’, 2013 o रोटरी इंटरनेशनल द्वारा ‘फॉर द सके ऑफ़ हॉनर’ पुरस्कार, 2013 o ग्रिफ्ल्स द्वारा ‘लाइफटाइम अचीवमेंट गवर्नेंस अवार्ड’, 2013 ( 20 ) 14 Votes have rated this Naukri. 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