वसुबन्धु जीवनी - Biography of Vasubandhu in Hindi Jivani Published By : Jivani.org वसुबन्धु बौद्ध नैयायिक थे। वे असंग के कनिष्ठ भ्राता थे। वसुबन्धु पहले हीनयानी वैभाषिकवेत्ता थे, बाद में असंग की प्रेरणा से इन्होंने महायान मत स्वीकार किया था। योगाचार के सिद्धांतों पर इनके अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। ये उच्चकोटि की प्रतिभा से संपन्न महान नैयायिक थे। "तर्कशास्त्र" नामक इनका ग्रंथ बौद्ध न्याय का बेजोड़ ग्रंथ माना जाता है। अपने जीवन का लंबा भाग इन्होंने शाकल, कौशांबी और अयोध्या में बिताया था। ये कुमारगुप्त, स्कंदगुप्त और बालादित्य के समकालिक थे। 490 ई. के लगभग 80 वर्ष की अवस्था में इनका देहांत हुआ था। जीवन और काम पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) में एक ब्राह्मण पैदा हुए, वसुबन्धु आसंगा के आधे भाई थे, योगाकार दर्शन की स्थापना में एक अन्य प्रमुख व्यक्ति थे। वसुबन्धु के नाम का अर्थ है "प्रचुरता का किसान।" वह और आसंगा बुद्ध की शिक्षाओं पर "छह गहने" या छह महान टिप्पणीकारों के सदस्य हैं। वे समुद्रगुप्त के पिता चंद्रगुप्त I के साथ समकालीन थे। यह जानकारी अस्थायी तौर पर 4 वें शताब्दी सीई में वसुबन्दू को रखती है। वासुबंधु की सबसे प्रारंभिक जीवनी परम कला (49 9-5 9 6) द्वारा चीनी में अनुवाद किया गया था। वसुबन्दू ने शुरू में बौद्ध सर्वस्वास्थवड़ा (जिसे वैविव पाउंड इको कहा जाता है, जो महावीभाषा को समेटते थे) के साथ अध्ययन किया था जो गांधार में प्रमुख था, और बाद में बाद में रूढ़िवादी सर्वस्वास्थिदा शाखा के प्रमुखों के साथ अध्ययन करने के लिए कश्मीर चले गए। घर लौटने के बाद उन्होंने अभिधर्म पर भाषण दिया और अभिसंधकोज़> अक्से रिक्के (अभिमान के खजाना पर छंद), एक सर्वस्वास्थि अभिधर्म शिक्षाओं का एक श्लोक, जो अपने घटक धर्मों (अभूतपूर्व घटनाओं) में अनुभव के सभी कारकों का एक विश्लेषण था, बना लिया। हालांकि वसुबन्दू भी कुछ समय से सर्वस्वास्थवाद रूढ़िवाद के बारे में प्रश्न करना शुरू कर चुके थे, और उन्होंने सोऔत्रिका शिक्षक मनोरथ से अध्ययन किया था। इस वजह से, वह अपने स्वयं के छंदों के लिए एक स्वत: टिप्पणी प्रकाशित करने के लिए चला गया, एक Sautrč ntika दृष्टिकोण (भी Dá rá¹ £ tÄ ntika कहा जाता है) से सर्वस्ववादी प्रणाली की आलोचना। ग्रन्थ रचना वसुबन्धु ने वैभाषिक सिद्धांतों का सम्यक प्रतिपादन करने के लिए 'अभिधर्मकोश' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, जिसमें छ: सौ कारिकाएं हैं। बाद में आचार्य ने इसका एक भाष्य भी लिखा। परम्परा से ज्ञात होता है कि भाष्य में में आचार्य वसुबन्धु ने सौत्रान्तिक नये को स्वीकार किया था, जिसके खंडन के लिए आचार्य संघधभद्र ने पच्चीस हज़ार श्लोकों में 'न्यायानुसार' शास्त्र की रचना की थी। 'कर्मसिद्धिप्रकरण' आचार्य की दूसरी रचना है, जिसमें सौत्रान्तिक दृष्टि होते हुए भी महायान का प्रभाव लक्षित होता है। मानो वे हीनयान से महायान में परिवर्तन की संक्रमण रेखा पार करते हुए विज्ञानवादी योगाचार दृष्टिकोण का समर्थन कर रहे थे। पच्चस्कंध प्रकरण और व्याख्यायुक्ति आचार्य वसुबन्धु की दूसरी रचनाएं हैं। 'त्रिस्वभावनिर्देश' में महायान सिद्धांतों का, विशेष रूप से परतंत्र, परिकल्पित और परिनिष्पन्न इन तीन स्वभावों (लक्षणों) का सुगम रीति से प्रतिपादन किया गया है। शिवतिका (सवृत्ति) और त्रिंशिका कारिकाओं में आचार्य वसुबन्धु के महायान दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति हुई है। जबकि विंशिका कारिका और उसकी वृत्ति में योगाचार के दृष्टिकोण से बाह्यार्थ का प्रतिषेध है, त्रिंशिका की तीस कारिकाओं में विज्ञानवाद के आलय विज्ञान सिद्धांत का क्रमबद्ध निरूपण किया गया है। मध्यान्तसूत्र विभाग सूत्रभाष्य आर्य मैत्रेयनाथ के मध्यान्तसूत्र विभाग की विस्तृत टीका है। इसके अतिरिक्त परमार्थसप्तति, सद्धर्मपुण्डरीकोपदेश, वज्रच्छैदिका प्रज्ञापारमिताशास्त्र, आर्य देव के शतशास्त्र की व्याख्या प्रभूति ग्रन्थ भी वसुबन्धु की कृतियों के रूप में स्वीकार किये जाते हैं। आचार्य वसुबन्धु ने सर्वास्तिवादी दृष्टिकोण से अभिधर्मकोश (कारिका तथा भाष्य) के आठ कोशस्थानों- धातु, इन्द्रिय, लोकधातु, कर्म, अनुशय, आर्यपुद्गल, ज्ञान और ध्यान तथा परिशिष्ट रूप पुद्गलकोश (भाष्य) में अभिधर्म के सिद्धांतों का विशद रूप से उपन्यास किया है। समय · वसुबन्धु के काल के विषय में बहुत विवाद है। · ताकाकुसू के अनुसार 420-500 ईस्वीय वर्ष उनका काल है। · वोगिहारा महोदय के मतानुसार आचार्य 390 से 470 ईस्वीय वर्षों में विद्यमान थे। · सिलवां लेवी उनका समय पाँचवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध मानते हैं। · एन. पेरी महोदय उनका समय 350 ईस्वीय वर्ष सिद्ध करते हैं। · फ्राउ वाल्नर महोदय इसी मत का समर्थन करते हैं। इन सब विवादों के समाधान के लिए कुछ विद्वान दो वसुबन्धुओं का अस्तित्व मानते हैं। उनमें एक वसुबन्धु तो आचार्य असङ्ग के छोटे भाई थे, जो महायान शास्त्रों के प्रणेता हुए तथा दूसरे वसुबन्धु सौत्रान्तिक थे, जिन्होंने अभिधर्म कोश की रचना की। · विन्टरनित्ज, मैकडोनल, डॉ॰ विद्याभूषण, डॉ॰ विनयतोष भट्टचार्य आदि विद्वान आचार्य को ईस्वीय चतुर्थ शताब्दी का मानते हैं। · परमार्थ ने आचार्य वसुबन्धु की जीवनी लिखी है। परमार्थ का जन्म उज्जैन में हुआ था और उनका समय 499 से 569 ईस्वीय वर्षों के मध्य माना जाता है। 569 में चीन के कैन्टन नगर में उनका देहावसान हुआ था। ताकाकुसू ने परमार्थ की इस वसुबन्धु की जीवनी का न केवल अनुवाद ही किया है, अपितु उसका समीक्षात्मक विशिष्ट अध्ययन भी प्रस्तुत किया है। उनके विवरण के अनुसार वसुबन्धु का जन्म बुद्ध के परिनिर्वाण के एक हज़ार वर्ष के अनन्तर हुआ। इस गणना के अनुसार ईस्वीय पंचम शताब्दी उनका समय निश्चित होता है। इससे विक्रमादित्य-बालादित्य की समकालीनता भी समर्थित हो जाती है। महाकवि वामन ने अपने 'काव्यालंकार' में भी यह बात कहीं है। *कृतियाँ मुख्य रचनाएँ अभिधर्मकोश पंचस्कन्ध प्रकरण कर्मसिद्धिप्रकरण विज्ञप्तिमात्रता शास्त्र विंशतिका त्रिशिका त्रिस्वभाव निर्देश *टीका ग्रन्थ अभिधर्मकोशभाष्य मध्यान्तविभाग महायानसूत्रालंकार धर्मधर्मताविभाग महायानसंग्रह सुखवतीव्यूह सूत्र दशभूमिका भाष्य अवतंसक सूत्र निर्वाण सूत्र विमलकीर्तिनिर्देश सूत्र श्रीमलदेवी सूत्र ( 6 ) 3 Votes have rated this Naukri. 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