मलिक मुहम्मद जायसी जीवनी - Biography of Malik Muhammad Jayasi in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मलिक मुहम्मद जायसी (१४७७-१५४२) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। जायसी मलिक वंश के थे। मिस्रमें सेनापति या प्रधानमंत्री को मलिक कहते थे। दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश राज्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा को मरवाने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था जिसके कारण यह नाम उस काल से काफी प्रचलित हो गया था। इरान में मलिक जमींदार को कहा जाता था व इनके पूर्वज वहां के निगलाम प्रान्त से आये थे और वहीं से उनके पूर्वजों की पदवी मलिक थी। हिंदी के प्रसिद्ध कवि और सूफी संत मलिक मुहम्मद जायसी (Malik Muhammad Jayasi) का जन्म परिस्थितिजन्य प्रमाणों के आधार पर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के जायस नामक कस्बे में 1466 ईस्वी में हुआ था | जायस का प्राचीन नाम “उद्यान नगर” था जहा उपनिषद काल के ऋषि उद्दालक आश्रम बना कर रहते थे | जायसी गृहस्थी थे और खेती करते थे | उनका झुकाव आरम्भ से ही सूफी मत की ओर था | साथ ही उन्होंने हिन्दू धर्म के दार्शनिक सिद्धांतो का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था | ऐसा माना जाता है कि एक दुर्घटना में उनके पुत्र की मृत्यु होने के बाद उन्होंने गृष्ट जीवन त्याग दिया और सूफी संत बन गये | इसका प्रभाव उनकी रचनाओं में मिलता है जायसी (Malik Muhammad Jayasi) के ग्रंथो की संख्या 20 बताई जाती है जिनमे से ये पांच मिलते है “पद्मावत” “अखरावट” “आखिरी कलाम” “कहरनामा” और “चित्ररेखा” | इनमे पद्मावत सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य और प्रेमाख्यान है | जायसी के निधन के संबध में दुखद प्रसंग मिलता है | कहते है अमेठी के राजा को जब उनकी काव्य प्रतिभा का पता चला तो वे सूफी कवि को ससम्मान अपने यहा ले गये और मंगरा के वन में रहने की व्यवस्था कर दी | जायसी ने एक बार राजा से कहा कि “मै योगबल से पशुओ का रूप धारण कर सकता हु”| कृतियाँ उनकी २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं। पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसमें पद्मिनी की प्रेम-कथा का रोचक वर्णन हुआ है। रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मध्यकालीन कवियों की गिनती में जायसी को एक प्रमुख कवि के रूप में स्थान दिया है। शिवकुमार मिश्र के अनुसार शुक्ल जी की दृष्टि जब जायसी की कवि प्रतिभा की ओर गई और उन्होंने जायसी ग्रंथावली का संपादन करते हुए उन्हें प्रथम श्रेणी के कवि के रूप में पहचाना, उसके पहले जायसी को इस रूप में नहीं देखा और सराहा गया था। इसके अनुसार यह स्वाभाविक ही लगता है कि जायसी की काव्य प्रतिभा इन्हें मध्यकाल के दिग्गज कवि गोस्वामी तुलसीदास के स्तर कि लगती है। इसी कारण से उन्हें तुलसी के समक्ष जायसी से बड़ा कवि नहीं दिखा। शुक्ल जी के अनुसार जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा परिमित है, पर प्रेमवेदना अत्यंत गूढ़ है। गुरु-परम्परा जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परम्परा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, "सैयद अशरफ, जो एक प्रिय सन्त थे मेरे लिए उज्ज्वल पन्थ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया। उनका चेला बन जाने पर मैं अपने पाप के खारे समुद्री जल को उन्हीं की नाव द्वारा पार कर गया और मुझे उनकी सहायता से घाट मिल गया, वे जहाँगीर चिश्ती चाँद जैसे निष्कलंक थे, संसार के मखदूम (स्वामी) थे और मैं उन्हीं के घर का सेवक हूँ"। "सैयद अशरफ जहाँगीर चिश्ती के वंश में निर्मल रत्न जैसे हाज़ी हुए तथा उनके अनन्तर शेख मुबारक और शेख कमाल हुए"। चार मित्रों का वर्णन जायसी ने 'पद्मावत' (22) में अपने चार मित्रों की चर्चा की है, जिनमें से युसुफ़ मलिक को 'पण्डित और ज्ञानी' कहा है, सालार एवं मियाँ सलोने की युद्ध-प्रियता एवं वीरता का उल्लेख किया है तथा बड़े शेख को भारी सिद्ध कहकर स्मरण किया है और कहा है कि ये चारों मित्र उनसे मिलकर एक चिह्न हो गए थे परन्तु उनके पूर्वजों एवं वंशजों की भाँति इन लोगों का भी कोई प्रमाणिक परिचय उपलब्ध नहीं है। मृत्यु मुहम्मद जायसी के जन्म की तरह ही इनकी मृत्यु के भी मतभेद मिले है। सैयद आले मुहम्मद मेहर जायसी ने किसी क़ाज़ी सैयद हुसेन की अपनी नोटबुक में दी गयी जिस तारीख़ '5 रज्जब 949 हिजरी' (सन 1542 ई.) का मलिक मुहम्मद जायसी की मृत्यु तिथि के रूप में उल्लेख किया है, उसे भी तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक उसका कहीं से समर्थन न हो जाए। कहा जाता है कि इनका देहांत अमेठी के आसपास के जंगलो में हुआ था। अमेठी के राजा ने इनकी समाधी बनवा दी, जो अभी भी है। ( 9 ) 20 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3