तिरुवल्लुवर जीवनी - Biography of Thiruvalluvar in Hindi Jivani Published By : Jivani.org तमिल भाषा में वेद की भांति सम्मानित ग्रन्थ “तिरुक्कुरल” के रचियता तिरुवल्लुवर (Thiruvalluvar) का समय आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व माना जाता है | जन-मानस में पीढ़ी दर पीढ़ी अंकित उनकी छवि के अतिरिक्त उनके जीवन के संबध में ओर कोई जानकारी उपलब्ध नही है | तिरुवल्लुवर अपनी पत्नी बासुही के साथ अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते थे | पत्नी चरखे पर सूत कातती और वे कपड़ा बुनकर बाजार में बेचते | उनके शांत स्वभाव ,सत्य-निष्ठा और सहनशीलता की सर्वत्र सराहना होती | उनकी सहनशीलता से एक धनी व्यक्ति के पुत्र के जीवन में इतना परिवर्तन आया कि पिता-पुत्र सदा के लिए उनके भक्त बन गये | वे बिना उनकी आज्ञा के कोई काम नही करते थे | अपने लोकहितकारी शिक्षाओं से प्रभावित एलेल शिंगन नाम के उस धनी व्यक्ति के आग्रह पर तिरुवल्लुवर ने जीवन के तीन पहलुओ – धर्म ,अर्थ और काम पर ग्रन्थ लिखना स्वीकार किया | उनका कहना था – मोक्ष के बारे में मै कुछ नही जानता | तिरुवल्लुवर (Thiruvalluvar) ने काव्य में अपना ग्रन्थ लिखा जिसमे कुल 1330 छोटी छोटी कविताये है – दोहे से भी छोटी | उस समय की प्रथा के अनुसार इसे तमिल विद्वानों की सभा में रखा गया तो सबने मुक्त कंठ से इसकी प्रशंशा की | तमिल में “तिरु” शब्द का अर्थ संत होता है | जिस छंद में यह ग्रन्थ लिखा गया , उसे “कुरल” कहते है | इस प्रकार इस ग्रन्थ का नाम “तिरुक्कुरल” पड़ा और रचियता वल्लुवर के स्थान पर तिरुवल्लुवर के नाम से विख्यात हुए | तिरुक्कुरल तिरुक्कुरल तमिल की एक सबसे श्रद्धेय प्राचीन कृति है . कुरल को 'दुनिया का आम विश्वास'[कृपया उद्धरण जोड़ें] माना जाता है, क्योंकि यह मानव नैतिकता और जीवन में बेहतरी का रास्ता दिखलाता है। संभवतः बाइबल, कुरान और गीता के बाद कुरल का सबसे अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]. 1730 में तिरुक्कुरल का लैटिन अनुवाद कोस्टांज़ो बेस्ची द्वारा किया गया जिससे यूरोपीय बुद्धिजीवियों को उल्लेखनीय रूप से तमिल साहित्य के सौंदर्य और समृद्धि को जानने में मदद मिली। तिरुक्कुरल का निर्माण तिरु और कुरल दो शब्दों को जोड़कर हुआ है, अर्थात तिरु + कुरल = तिरुक्कुरल. तिरुक्कुरल तीन वर्गों में विभाजित है। पहले खंड में अरम, विवेक और सम्मान के साथ अच्छे नैतिक व्यवहार ("सही आचरण") को बताया गया है। खंड दो में पारुल सांसारिक मामलों की सही ढंग से चर्चा की गई है और तीसरे अनुभाग इनबम, पुरूष और महिला के बीच प्रेम संबंधों पर विचार किया गया है। प्रथम खंड में 38 अध्याय हैं, दूसरे में 70 अध्याय और तीसरे में 25 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में कुल 10 दोहे या कुरल है और कुल मिलाकर कृति में 1330 दोहे हैं। मूर्ति भारतीय उपमहाद्वीप (कन्याकुमारी) के दक्षिणी सिरे पर संत तिरुवल्लुवर की 133 फुट लंबी प्रतिमा बनाई गई है जहां अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर मिलते हैं। 133 फुट, तिरुक्कुरल के 133 अध्यायों या अथियाकरम का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी तीन अंगुलिया अरम, पोरूल और इनबम नामक तीन विषय अर्थात नैतिकता, धन और प्रेम के अर्थ को इंगित करती हैं। संत तिरुवल्लुवर की धीरता संत तिरुवल्लुवर जाति से जुलाहा थे। एक दिन वह अतीव परिश्रम से तैयार की हुई साड़ी को लेकर बिक्री के लिए बाज़ार में बैठे ही थे कि एक युवक उनके पास आया। उसे तिरुवल्लुवर की साधुता पर शंका होती थी। उसने उनकी परीक्षा लेने के विचार से उस साड़ी का मूल्य पूछा। संत ने विनीत वाणी में दो रुपया बताया। युवक ने उसे उठाकर दो टुकड़े किए और फिर उनका मूल्य पूछा। संत ने उसी निश्छल स्वर से एक-एक रुपया बताया। युवक ने फिर प्रत्येक के दो टुकड़े कर मूल्य पूछा और संत ने शांत स्वर में आठ-आठ आने बताया। युवक ने पुनः प्रत्येक के दो-दो टुकड़े कर मूल्य पूछा और संत ने धीरे, किंतु गंभीर स्वर में ही उत्तर दिया, 'चार-चार आने।' आखिर फाड़ते-फाड़ते जब वह साड़ी तार-तार हो गई, तो युवक उसका गोला बनाकर फेंकते हुए बोला 'अब इसमें रहा ही क्या है कि इसके पैसे दिए जाएँ।' संत चुप ही रहे। तब युवक ने धन का अभिमान प्रदर्शित करते हुए उन्हें दो रुपए देते हुए कहा, 'यह लो साड़ी का मूल्य!' किंतु तिरुवल्लुवर बोले- "बेटा! जब तुमने साड़ी ख़रीदी ही नहीं, तो मैं दाम भी कैसे लूँ?" अब तो युवक का उद्दंड हृदय पश्चाताप से दग्ध होने लगा। विनीत हो वह उनसे क्षमा माँगने लगा। तिरुवल्लुवर की आँखें डबडबा आयीं। वे बोले- "तुम्हारे दो रुपए देने से तो इस क्षति की भरपाई नहीं होगी? उसको धुनने और सूत बुनने में कितने लोगों का समय और श्रम लगा होगा? जब साड़ी बुनी गई, तब मेरे कुटुंबियों ने कितनी कठिनाई उठाई होगी?" युवक की आँखों से पश्चाताप के आँसू निकल पड़े। वह बोला- "मगर आपने मुझे साड़ी फाड़ने से रोका क्यों नहीं?" संत ने जवाब दिया- "रोक सकता था, मगर तब क्या तुम्हें शिक्षा देने का ऐसा अवसर मिल सकता था?" अनमोल वचन 1. बेहतरीन अवसर मिले तो उसे पकड़ ले और सर्वश्रेष्ठ काम ही करे। 2. इंसान भीतर से जितना मजबूत होगा उतना ही उसका कद ऊंचा होगा। 3. अच्छे और विनर्म शब्दों की जानकारी होने के बावजूद दूसरों के साथ अपशब्दों का इस्तेमाल करना वैसा ही है जैसे पेड़ पर पके हुए फल लगे होने के बावजूद कच्चे फल खाना। 4. पानी चाहे जितना भी गहरा हो, कमल का फूल पानी के ऊपर ही खिलता है। उसी तरह से इंसान कितना महान है, ये उसकी अंदरुनी और मानसिक ताकत पर निर्भर करता है। 5. बुरे व्यवहार या बुरी आदतो वाले व्यक्ति से बात करना वैसा है, जैसे टॉर्च की मदद से पानी के नीचे डूबते आदमी को तलाशना। 6. अगर जरूरत के वक़्त पर थोड़ी सी मदद मिल जाए तो उससे ज्यादा महत्वपूर्ण या बड़ा कुछ भी नहीं हो सकता है। ( 9 ) 13 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 2