श्रीलाल शुक्ल जीवनी - Biography of Sri Lal Sukla in Hindi Jivani Published By : Jivani.org श्रीलाल शुक्ल को लखनऊ जनपद के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में राज्य सिविल सेवासे नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए। उनका विधिवत लेखन 1954 से शुरू होता है और इसी के साथ हिंदी गद्य का एक गौरवशाली अध्याय आकार लेने लगता है। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' (1957) तथा पहला प्रकाशित व्यंग 'अंगद का पाँव' (1958) है। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास 'राग दरबारी' (1968) के लिये उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक दूरदर्शन-धारावाहिक का निर्माण भी हुआ। श्री शुक्ल को भारत सरकार ने 2008 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है। व्यक्तित्व श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपनी मिसाल आप था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। श्रीलाल शुक्ल अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत और हिन्दी भाषा के विद्वान थे। श्रीलाल शुक्ल संगीत के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। 'कथाक्रम' समारोह समिति के वह अध्यक्ष रहे। श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, मगर उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे। न पढ़ने और लिखने के लिए लोग सैद्धांतिकी बनाते हैं। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे। लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली राग दरबारी जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी। लखनऊ का गौरव 'विश्वनाथ त्रिपाठी' ने हरिशंकर परसाई के लेखन को ‘स्वतंत्र भारत की आवाज़’ कहा है। श्रीलाल शुक्ल का स्वर मिला लें तो यह आवाज़ और प्रखर व पुख्ता होती है। वैसे तो वे पूरे भारत के थे, लेकिन लखनऊ के ख़ास गौरव थे भाषा शैली उन्होंने शिवपालगंज के रूप में अपनी अद्भुत भाषा शैली, मिथकीय शिल्प और देशज मुहावरों से गढ़ा था। त्रासदियों और विडंबनाओं के इसी साम्य ने ‘राग दरबारी’ को महान कृति बनाया, तो इस कृति ने श्रीलाल शुक्ल को महान लेखक। राग दरबारी व्यंग्य है या उपन्यास, यह एक श्रेष्ठ रचना है, जिसकी तसदीक करोड़ों पाठकों ने की है और कर रहे हैं। ‘विश्रामपुर का संत’, ‘सूनी घाटी का सूरज’ और ‘यह मेरा घर नहीं’ जैसी कृतियाँ साहित्यिक कसौटियों में खरी साबित हुई हैं। बल्कि ‘विश्रामपुर का संत’ को स्वतंत्र भारत में सत्ता के खेल की सशक्त अभिव्यक्ति तक कहा गया था। राग दरबारी को इतने वर्षों बाद भी पढ़ते हुए उसके पात्र हमारे आसपास नजर आते हैं। शुक्लजी ने जब इसे लिखा था, तब एक तरह की हताशा चारों तरफ़ नजर आ रही थी। यह मोहभंग का दौर था। प्रकाशित कृतियाँ- उपन्यास- सूनी घाटी का सूरज (१९५७), अज्ञातवास (१९६२), राग दरबारी (१९६८) आदमी का जहर (१९७२), सीमाएँ टूटती हैं (१९७३), मकान (१९७६), पहला पडाव(१९८७), बिस्रामपुर का सन्त (१९९८), बब्बर सिंह और उसके साथी (१९९९), राग विराग (२००१)। व्यंग्य निबंध संग्रह- अंगद के पाँव (१९५८), यहाँ से वहाँ (१९७०), मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ (१९७९), उमरावनगर में कुछ दिन (१९८६), कुछ जमीन में कुछ हवा में (१९९०), आओ बैठ लें कुछ देर (१९९५), अगली शताब्दी के शहर (१९९६), जहालत के पचास साल (२००३), खबरों की जुगाली (२००५)। कहानी संग्रह- ये घर में नहीं (१९७९), सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ (१९९१), इस उम्र में (२००३), दस प्रतिनिधि कहानियाँ (२००३)। साक्षात्कार संग्रह- मेरे साक्षातकार (२००२) संस्मरण- कुछ साहित्य चर्चा भी (२००८) आलोचना- भगवती चरण वर्मा (१९८९), अमृतलाल नागर(आलोचना), अज्ञेयःकुछ रंग कुछ राग (१९९९)। संपादन- हिन्दी हास्य व्यंग्य संकलन (२०००) आदि। इनके उपन्यास रागदरबारी का अंग्रेजी सहित १६ भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, इस पर दूरदर्शन ने एक धारावाहिक का निर्माण किया है तथा इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। पुरस्कार व सम्मान- १९७० में राग दरवारी के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७८ में मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में हिन्दी संस्थान का साहित्य भूषण पुरस्कार, १९९१ में कुरूक्षेत्र विश्व विद्यालय का गोयल साहित्यिक पुरस्कार, १९९४ में हिन्दी संस्थान का लोहिया सम्मान, १९९६ में मध्य प्रदेश सरकार का शरद जोशी सम्मान, १९९७ में मध्य प्रदेश सरकार का मैथिली शरण गुप्त सम्मान, १९९९ में बिड़ला फाउन्डेशन का व्यास सम्मान, २००५ में उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान, २००८ भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण ८० वर्ष पूरे होने पर दिसम्बर २००५ में नयी दिल्ली में एक सम्मान समारोह का आयोजन जिसमें ‘‘श्रीलाल शुक्लः जीवन ही जीवन का विमोचन। निधन ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित तथा 'राग दरबारी' जैसा कालजयी व्यंग्य उपन्यास लिखने वाले मशहूर व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल को 16 अक्टूबर को पार्किंसन बीमारी के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 28 अक्तूबर, 2011 को शुक्रवार सुबह 11.30 बजे सहारा अस्पताल में श्रीलाल शुक्ल का निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे। उनके निधन पर लखनऊ के साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। ( 6 ) 5 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 4