आचार्य किशोरीदास जीवनी - Biography of Kishori Das Vajpeyi in Hindi Jivani Published By : Jivani.org किशोरीदास वाजपेयी हिन्दी और संस्कृत के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं व्याकरणाचार्य थे। संस्कृत और हिन्दी के विद्वान, व्याकरण के पंडित, हिन्दी के आधुनिक पाणिनी की तरह जिन्हें डॉ. रामविलास शर्मा, राहुल सांकृत्यायन आदि मानते थे, वे स्वतंत्र वृत्ति से कनखल में अत्यन्त आर्थिक कष्ट में जीवनयापन करते रहे। कुछ समय के लिए उन्होंने शिक्षक का कार्य किया, और नागरी प्रचारिणी सभा के कोश विभाग में भी रहे। वे स्वाभिमानी और अक्खड़ स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। 1978 में मोरारजी देसाई ने मंच से नीचे उतरकर उत्तर प्रदेश का सम्मान उन्हें दिया। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं: ‘ब्रजभाषा का व्याकरण’, ‘हिन्दी निरुक्त’, ‘अच्छी हिन्दी’, ‘हिन्दी शब्दानुशासन’, ‘भारतीय भाषाविज्ञान’, ‘हिन्दी वर्तनी और शब्द विश्लेषण’, आदि। उनके कार्य का महत्व इसलिए है कि भाषाविज्ञान को उन्होंने शुद्ध भारतीय दृष्टि से लिया है। अंग्रेज़ी की कोई भी छाप उनके लेखन पर नहीं है। किशोरीदास वाजपेयी ने जीवनपर्यंत हिन्दी को स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किये थे। किशोरीदास वाजपेयी को हिन्दी का प्रथम वैज्ञानिक भी कहा जाता है। आचार्य किशोरीदास का जन्म सन् 1898 में रामनगर जि+ला कानपुर (उ.प्र.) में हुआ था। उन्होंने लाहौर से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की थी।वाजपेयीजी के जीवन पर आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के कृपापूर्ण प्रोत्साहन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आचार्य द्विवेदी ने हिन्दी भाषा के व्याकरण सम्मत परिष्कार का जो आंदोलन चलाया था, उस रथ की लगाम को वाजपेयीजी जीवनपर्यंत थामे रहे। वाजपेयीजी पहले ऐसे भाषाविद् थे, जिन्होंने हिन्दी व्याकरण के अंगे्रज़ी आधार को अस्वीकार कर उसे संस्कृत के आधार पर प्रतिष्ठित किया। संस्कृत का आधार स्वीकार करते हुए उन्होंने हिन्दी भाषा की जो अपनी मूल प्रकृति है, उसकी न केवल रक्षा की, बल्कि उसका वैज्ञानिक आधार दृढ़ता से प्रतिपादित भी किया। कुछ सहृदय एवं मूल्यांकन करने वाले विद्वानों में उन्हें 'हिन्दी का पाणिनि' तक घोषित किया है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने कह-कहकर उनसे 'हिंदी शब्दानुशासन' लिखवा लिया। वाजपेयीजी ने 'सुदामा' नाम से नाटक भी लिखा। 'तरंगिणी' नामक संग्रह में उनकी ब्रज-कविताएं और दोहे संकलित हैं। वाजपेयीजी ने 'ब्रजभाषा व्याकरण' नामक एक उत्तम ग्रंथ भी लिखा था। इसमें केवल व्याकरण ही नहीं, ब्रजभाषा के उद्भव, विकास और उसके स्वरूप का भी गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कुछ समसामयिक विषयों पर भी पुस्तकें लिखी हैं। जैसे 'कांग्रेस का इतिहास' और 'नेताजी सुभाषचंद्र बोस'। एक अन्य पुस्तक में उन्होंने अपने साहित्यिक संस्मरण भी लिखे। 'हिन्दी शब्दानुशासन' तो उनके जीवन का मुख्य ग्रंथ है ही। इसके अतिरिक्त इसी विषय पर उनकी एक और कृति 'राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण' भी है। वाजपेयीजी के भाषा-शास्त्रीय स्वरूप को जानने के लिए उनकी अन्य पुस्तक 'भारतीय भाषा-विज्ञान' का अध्ययन भी आज की पीढ़ी के लिए कम महत्त्व का नहीं। बाजपेयी जी ने न केवल संस्कृत हिन्दी के व्याकरण क्षेत्र को विभूषित किया अपितु आलोचना क्षेत्र को भी बहुत सुन्दर ढंग से संवारा। आपने साहित्य समीक्षा के शास्त्रीय सिद्धातों का प्रतिपादन कर नये मानदण्ड स्थापित किये। साहित्याचार्य शालिग्रम शास्त्री जी की साहित्य दर्पण में छपी "विमला टीका' पर बाजपेयी जी ने माधुरी में एक समीक्षात्मक लेख माला लिख डाली। इस लेख का सभी ने स्वागत किया और वे आलोचना जगत में चमक उठे। इसके बाद "माधुरी" में प्रकाशित "बिहारी सतसई और उसके टीकाकार" लेख माला के प्रकाशित होते ही वे हिन्दी साहित्य के आलोचकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए। बाजपेयी जी न केवल साहित्यिक अपितु सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन में भी आजीवन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। योग्यता तो थी ही, उनकी निर्भीकता, स्पष्टवादिता और स्वाभिमान उनके जीवन के अभिन्न अंग रहे। अपनी निर्भीकता के कारण वे "अक्खड कबीर" और स्वाभिमान के कारण "अभिमान मेरु" कहाये जाने लगे। बडे से बडे प्रलोभन उनके जीवन मूल्यों और सिद्धांतों को डिगा न सके। लोक मर्यादाओं का पूर्ण रूपेण पालन करते हुए दुरभिसंधियों पर जम कर प्रहार किया। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि, "मैं हूँ, कबीर पंथी" साहित्यकार, किसी की चाकरी मंजूर नहीं, अध्यापकी कर लूंगा, नौकरी कर लूंगा पर आत्मसम्मान की कीमत पर नहीं। बाजपेयी जी ने स्वाधीनता संग्राम को भी अछूता नहीं छोडा। एक परम योद्धा बन कर जन साधारण में राष्टीय चेतना और देशप्रेम के प्राण फूंके। आपका पहला लेख "वैष्णव सर्वस्व" में छपा, जिससें साहित्य जगत को इनकी लेखन कला का परिचय मिला। फिर तो इनके लेखों की झडी ही लग गई जो "माधुरी' और "सुधा' में छपे। पं॰ सकल नारायण शर्मा का एक लेख "माधुरी" में छपा था जिसमें हिन्दी व्याकरण संबंधी अनेक जिज्ञासाएँ भी थीं। उपसंहार: किशोरीदास वाजपेयीजी ने एक भाषा-वैज्ञानिक के रूप में हिन्दी की अशुद्धियों का परिमार्जन कर परिनिष्ठित हिन्दी का आदर्श रूप स्थापित किया । भाषा के मानकीकरण हेतु उन्होंने जो प्रयास किये, वह स्तुत्य हैं । जीते-जी उनके इस अवदान के लिए भले ही उतना सम्मान न मिला हो, लेकिन उन्होंने जो भी कार्य हिन्दी के हित में किया, वह राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति उनका असीमित प्रेमभाव ही था । हिन्दी की उपेक्षा को देखकर वह बहुत क्षुब्ध हो जाया करते थे । हिन्दी को यथोचित गरिमा और सम्मान देने के लिए उन्होंने जो भी कार्य किये, वह अमूल्य हैं । प्रमुख पुस्तकें अच्छी हिन्दी अच्छी हिन्दी का नमूना हिन्दी शब्दानुशासन लेखन कला ब्रजभाषा का व्याकरण राष्टभाषा का प्रथम व्याकरण हिन्दी शब्द मीमांसा हिन्दी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण भारतीय भाषा विज्ञान सहित्य जीवन के अनुभव और संस्करण संस्कृति के पाँच अध्याय मानव धर्म मीमांसा द्वापर की राज्य क्रांति कांग्रेस का 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