सियारामशरण गुप्त जीवनी – Biography of Siyaram Sharan Gupt in Hindi Jivani Published By : Jivani.org सियारामशरण गुप्त ( Siyaram Sharan Gupt) का जन्म 4 सितंबर 1895 को हुआ था। आप हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। आप गाँधीवाद से विशेष प्रभावित थे। एक कवि के रुप में आपको विशेष ख्याति मिली। कथाकार के रूप में भी आपने कथा-साहित्य में अपना स्थान बनाया। लम्बी बीमारी के बाद 29 मार्च 1963 को सियारामशरण गुप्त का निधन हो गया। श्री सियारामशरण गुप्त राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। कवि, कथाकार और निबन्ध लेखक के रूप में उन्होंने अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था। श्री सियारामशरण गुप्त की रचनाओं में उनके व्यक्तित्व की सरलता, विनयशीलता, सात्विकता और करुणा सर्वत्र प्रतिफलित हुई है। वास्तव में गुप्त जी मानवीय संस्कृति के साहित्यकार हैं। उनकी रचनाएँ सर्वत्र एक प्रकार के चिन्तन, आस्था-विश्वासों से भरी हैं, जो उनकी अपनी साधना और गांधी जी के साध्य साधन की पवित्रता की गूंज से ओत-प्रोत हैं। साहित्य सेवा चिरगाँव (झाँसी) में बाल्यावस्था बीतने के कारण बुंदेलखंड की वीरता और प्रकृति सुषमा के प्रति आपका प्रेम स्वभावगत था। घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद से गुप्त जी का व्यक्तित्व विकसित हुआ। गुप्त जी स्वयं शिक्षित कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला और उनका युगबोध सियारामशरण ने यथावत् अपनाया था। अत: उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। दोनों गुप्त बंधुओं ने हिंदी के नवीन आंदोलन छायावाद से प्रभावित होकर भी अपना इतिवृत्तात्मक अभिघावादी काव्य रूप सुरक्षित रखा है। विचार की दृष्टि से भी सियारामशरण जी ज्येष्ठ बंधु के सदृश गांधीवाद की परदु:खकातरता, राष्ट्रप्रेम, विश्वप्रेम, विश्व शांति, हृदय परिवर्तनवाद, सत्य और अहिंसा से आजीवन प्रभावित रहे। उनके काव्य वस्तुत: गांधीवादी निष्टा के साक्षात्कारक पद्यबद्ध प्रयत्न हैं। गुप्त जी के मौर्य विजय (१९१४ ई.), अनाथ (१९१७), दूर्वादल (१९१५-२४), विषाद (१९२५), आर्द्रा (१९२७), आत्मोत्सर्ग (१९३१), मृण्मयी (१९३६), बापू (१९३७), उन्मुक्त (१९४०), दैनिकी (१९४२), नकुल (१९४६), नोआखाली (१९४६), गीतासंवाद (१९४८) आदि काव्यों में मौर्य विजय और नकुल आख्यानात्मक हैं। शेष में भी कथा का सूत्र किसी न किसी रूप में दिखाई पड़ता है। मानव प्रेम के कारण कवि का निजी दु:ख, सामाजिक दु:ख के साथ एकाकार होता हुआ वर्णित हुआ है। विषाद में कवि ने अपने विधुर जीवन और आर्द्रा में अपनी पुत्री रमा की मृत्यु से उत्पन्न वेदना के वर्णन में जो भावोद्गार प्रकट किए हैं, वे बच्चन के प्रियावियोग और निराला जी की "सरोजस्मृति' के समान कलापूर्ण न होकर भी कम मार्मिक नहीं हैं। इसी प्रकार अपने हृदय की सचाई के कारण गुप्त जी द्वारा वर्णित जनता की दरिद्रता, कुरीतियों के विरुद्ध आक्रोश, विश्व शांति जैसे विषयों पर उनकी रचनाएँ किसी भी प्रगतिवादी कवि को पाठ पढ़ा सकती हैं। हिंदी में शुद्ध सात्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की रचनाएँ स्मरणीय रहेंगी। रचनाएँ 'मौर्य विजय' प्रथम रचना सन् 1914 में लिखी। आपकी समस्त रचनाएं पांच खण्डों में संकलित कर प्रकाशित है। 'आर्द्रा, 'दुर्वादल, 'विषाद, 'बापू तथा 'गोपिका इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'गोद, 'नारी, 'अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), 'मानुषी (कहानी संग्रह), नाटक, निबंध आदि लगभग 50 ग्रंथ रचे। सहज आकर्षक शैली तथा भाव और भाषा की सरलता इनकी विशेषता है। रचना संग्रह खण्ड काव्य- अनाथ, आर्द्रा, विषाद, दूर्वा दल, बापू, सुनन्दा और गोपिका। कहानी संग्रह- मानुषी-- नाटक- पुण्य पर्व अनुवाद- गीता संवाद नाट्य- उन्मुक्त गीत कविता संग्रह- अनुरुपा तथा अमृत पुत्र काव्यग्रन्थ- दैनिकी नकुल, नोआखली में, जय हिन्द, पाथेय, मृण्मयी तथा आत्मोसर्ग। उपन्यास- अन्तिम आकांक्षा तथा नारी और गोद। निबन्ध संग्रह- झूठ-सच। पद्यानुवाद- ईषोपनिषद, धम्मपद और भगवत गीता भाषा और शैली सियारामशरण गुप्त की भाषा-शैली पर घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद का प्रभाव था। गुप्त जी स्वयं शिक्षित कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकला और उनका युगबोध सियारामशरण ने यथावत् अपनाया था। अत: उनके सभी काव्य द्विवेदी युगीन अभिधावादी कलारूप पर ही आधारित हैं। दोनों गुप्त बंधुओं ने हिंदी के नवीन आंदोलन छायावाद से प्रभावित होकर भी अपना इतिवृत्तात्मक अभिघावादी काव्य रूप सुरक्षित रखा है। विचार की दृष्टि से भी सियारामशरण जी ज्येष्ठ बंधु के सदृश गांधीवाद की परदु:खकातरता, राष्ट्रप्रेम, विश्वप्रेम, विश्व शांति, हृदय परिवर्तनवाद, सत्य और अहिंसा से आजीवन प्रभावित रहे। उनके काव्य वस्तुत: गांधीवादी निष्टा के साक्षात्कारक पद्यबद्ध प्रयत्न हैं। हिंदी में शुद्ध सात्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की रचनाएँ स्मरणीय रहेंगी। उनमें जीवन के श्रृंगार और उग्र पक्षों का चित्रण नहीं हो सका किंतु जीवन के प्रति करुणा का भाव जिस सहज और प्रत्यक्ष विधि पर गुप्त जी में व्यक्त हुआ है उससे उनका हिंदी काव्य में एक विशिष्ट स्थान बन गया है। हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के वह प्रतिनिधि कवि हैं। सम्मान और पुरस्कार दीर्घकालीन हिन्दी सेवाओं के लिए सन् 1962 ई. में "सरस्वती' हीरक जयन्ती में सम्मानित किये गये। आपको सन् 1941 ई. में "सुधाकर पदक' नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी द्वारा प्रदान किया गया। निधन सियारामशरण गुप्त का असमय ही 29 मार्च 1963 ई. को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। ( 6 ) 139 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3