उपेंद्रनाथ अश्क जीवनी – Biography of Upendranath Ashk in Hindi Jivani Published By : Jivani.org उपेन्द्रनाथ का जन्म 14 दिसंबर, 1910 को जालंधर में हुआ। आपने लाहौर से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में, स्कूल में अध्यापक हो गए। 1933 में साप्ताहिक 'भूचाल' का प्रकाशन आरंभ किया। अश्कजी को अध्यापन, पत्रकारिता, वकालत, रंगमंच, रेडियो, प्रकाशन और स्वतंत्र लेखन का व्यापक अनुभव था। 1936 में पहली पत्नी का निधन हो गया व 1941 में कौशल्याजी से दूसरा विवाह किया। उर्दू में 'जुदाई की शाम का गीत', 'नवरत्न,' व 'औरत की फितरत' संग्रह प्रकाशित। अश्कजी ने आठ नाटक, अनेक एकांकी, सात उपन्यास, दो सौ से भी अधिक कहानियां, अनेक संस्मरण लिखे। आपके उपन्यास 'सितारों के खेल', 'गिरती दीवारें', 'गर्म राख', 'पत्थर अल पत्थर', 'शहर में घूमता आईना', 'एक नन्ही कंदील', 'बड़ी-बड़ी आंखें' खासे चर्चित रहे।‘ 'अश्क' का जन्म जालन्धर, पंजाब में हुआ। जालन्धर में प्रारम्भिक शिक्षा लेते समय ११ वर्ष की आयु से ही वे पंजाबी में तुकबंदियाँ करने लगे थे। कला स्नातक होने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया तथा विधि की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ पास की। अश्क जी ने अपना साहित्यिक जीवन उर्दू लेखक के रूप में शुरू किया था किन्तु बाद में वे हिन्दी के लेखक के रूप में ही जाने गए। १९३२ में मुंशी प्रेमचन्द्र की सलाह पर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। १९३३ में उनका दूसरा कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' प्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने लिखी। उनका पहला काव्य संग्रह 'प्रातः प्रदीप' १९३८ में प्रकाशित हुआ। बम्बई प्रवास में आपने फ़िल्मों की कहानियाँ, पटकथाएँ, सम्वाद और गीत लिखे, तीन फ़िल्मों में काम भी किया किन्तु चमक-दमक वाली ज़िन्दगी उन्हे रास नहीं आई। १९ जनवरी १९९६ को अश्क जी चिर निद्रा में लीन हो गए। उनको १९७२ के 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया। उपेंद्रनाथ अश्क ने साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में लिखा है, लेकिन उनकी मुख्य पहचान एक कथाकार के रूप में ही है। काव्य, नाटक, संस्मरण, उपन्यास, कहानी, आलोचना आदि क्षेत्रों में वे खूब सक्रिय रहे। इनमें से प्राय: हर विधा में उनकी एक-दो महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय रचनाएं होने पर भी वे मुख्यत: कथाकार हैं। उन्होंने पंजाबी में भी लिखा है, हिंदी-उर्दू में प्रेमचंदोत्तर कथा-साहित्य में उनका विशिष्ट योगदान है। जैसे साहित्य की किसी एक विधा से वे बंधकर नहीं रहे उसी तरह किसी विधा में एक ही रंग की रचनाएं भी उन्होंने नहीं की।समाजवादी परंपरा का जो रूप अश्क के उपन्यासों में दृश्यमान होता है वह उन चरित्रों के द्वारा उत्पन्न होता है जिन्हें उन्होंने अपनी अनुभव दृष्टि और अद्भुत वर्णन-शैली द्वारा प्रस्तुत किया है। उपेंद्रनाथ अश्क ने साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में लिखा है, लेकिन उनकी मुख्य पहचान एक कथाकार के रूप में ही है। काव्य, नाटक, संस्मरण, उपन्यास, कहानी, आलोचना आदि क्षेत्रों में वे खूब सक्रिय रहे। इनमें से प्राय: हर विधा में उनकी एक-दो महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय रचनाएं होने पर भी वे मुख्यत: कथाकार हैं। उन्होंने पंजाबी में भी लिखा है, हिंदी-उर्दू में प्रेमचंदोत्तर कथा-साहित्य में उनका विशिष्ट योगदान है। जैसे साहित्य की किसी एक विधा से वे बंधकर नहीं रहे उसी तरह किसी विधा में एक ही रंग की रचनाएं भी उन्होंने नहीं की। समाजवादी परंपरा का जो रूप अश्क के उपन्यासों में दृश्यमान होता है वह उन चरित्रों के द्वारा उत्पन्न होता है जिन्हें उन्होंने अपनी अनुभव दृष्टि और अद्भुत वर्णन-शैली द्वारा प्रस्तुत किया है। अश्क के व्यक्ति चिंतन के पक्ष को देखकर यही सुर निकलता है कि उन्होंने अपने चरित्रों को शिल्पी की बारीक दृष्टि से तराशा है, जिसकी एक-एक रेखाओं से उसकी संघर्षशीलता का प्रमाण दृष्टिगोचर होता है। कार्यक्षेत्र बी.ए. पास करते ही उपेन्द्रनाथ अश्क जी अपने ही स्कूल में अध्यापक हो गये। पर 1933 में उसे छोड़ दिया और जीविकोपार्जन हेतु साप्ताहिक पत्र 'भूचाल' का सम्पादन किया और एक अन्य साप्ताहिक 'गुरु घण्टाल' के लिए प्रति सप्ताह एक रुपये में एक कहानी लिखकर दी। 1934 में अचानक सब छोड़ लॉ कॉलेज में प्रवेश ले लिया और 1936 में लॉ पास किया। उसी वर्ष लम्बी बीमारी और प्रथम पत्नी के देहान्त के बाद इनके जीवन में एक अपूर्व मोड़ आया। 1936 के बाद अश्क के लेखक व्यक्तित्व का अति उर्वर युग प्रारम्भ हुआ। 1941 में अश्क जी ने दूसरा विवाह किया। उसी वर्ष 'ऑल इण्डिया रेडियो' में नौकरी की। 1945 के दिसम्बर में बम्बई के फ़िल्म जगत के निमंत्रण को स्वीकार कर वहाँ फ़िल्मों में लेखन का कार्य करने लगे। 1947-1948 में अश्क जी निरन्तर अस्वस्थ रहे। पर यह उनके साहित्यिक सर्जन की उर्वरता का स्वर्ण-समय था। 1948 से 1953 तक अश्क जी दम्पत्ति (पत्नी कौशल्या अश्क) के जीवन में संघर्ष के वर्ष रहे। पर इन्हीं दिनों अश्क यक्ष्मा के चंगुल से बचकर इलाहाबाद आये, इन्होंने 'नीलाभ प्रकाशन गृह' की व्यवस्था की, जिससे उनके सम्पूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व को रचना और प्रकाशन दोनों दृष्टि से सहज पथ मिला। अश्क जी ने अपनी कहानी, उपन्यास, निबन्ध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया है। सम्मान और पुरस्कार उपेन्द्रनाथ अश्क जी को सन् 1972 ई. में 'सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उपेन्द्रनाथ अश्क को 1965 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। निधन उपेन्द्रनाथ अश्क जी का 19 जनवरी, सन् 1996 ई. में निधन हो गया था। ( 6 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0