देवी लाल जीवनी - Biography of Devi Lal in Hindi Jivani Published By : Jivani.org चौधरी देवी लाल (23 जुलाई 1914 - 14 नवम्बर 2001) जो कि हरियाणा में "ताऊ देवी लाल" के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, हरियाणा के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे जो कि 19 अक्टूबर 1989 21 जून 1991तक भारत के उप-प्रधानमंत्री रहे। वे दो बार (21 जून 1977 से 28 जून 1979, तथा 17 जुलाई 1987 से 2 दिसम्बर 1989) हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे। राजनीतिक जीवन चौ. देवीलाल में बचपन से ही संघर्ष का मादा कूट-कूट भरा हुआ था। परिणामत: बचपन में उन्होंने जहाँ अपने स्कूली जीवन में मुजारों के बच्चों के साथ रहकर नायक की भूमिका निभाई। इसके साथ ही महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, भगत सिंह के जीवन से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर राष्ट्रीय सोच का परिचय दिया। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने सन् 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। इन्हीं नीतियों को बाद में अन्य राज्यों व केन्द्र ने भी अपनाया। इसी प्रकार केन्द्र में प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक इतिहास में त्याग का नया आयाम स्थापित किया। वे ताउम्र देश एवं जनता की सेवा करते रहे और किसानों के मसीहा के रूप में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। हरियाणा निर्माता संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था। उन्होंने इस भेदभाव को न सिर्फ पार्टी मंच पर निरंतर उठाया बल्कि विधानसभा में भी आंकड़ों सहित यह बात रखीं और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया। जिसके परिणामस्वरूप 1 नवम्बर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद आजादी के बाद, वह भारत के किसानों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरा और देवी लाल ने एक किसान आंदोलन शुरू किया और अपने 500 कर्मचारियों के साथ गिरफ्तार कर लिया। कुछ समय बाद, मुख्यमंत्री, गोपी चंद भार्गव ने एक समझौता किया और मुज़रा अधिनियम में संशोधन किया गया। 1 9 52 में पंजाब विधानसभा के सदस्य और 1 9 56 में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने एक अलग राज्य के रूप में हरियाणा के गठन में एक सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभाई। 1 9 58 में, वह सिरसा से निर्वाचित हुए। 1 9 71 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 1 9 74 में रोरी विधानसभा क्षेत्र में सफलतापूर्वक इसके खिलाफ चुनाव लड़ा। 1 9 75 में, इंदिरा गांधी ने आपातकाल और देवी लाल की घोषणा की, साथ ही सभी विपक्षी नेताओं को 1 9 महीनों के लिए जेल भेज दिया गया। 1 9 77 में, आपातकालीन समाप्ति और आम चुनाव हुए। वह जनता पार्टी की टिकट पर चुने गए और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। आपातकाल और तानाशाही कुशासन के अपने दृढ़ विरोध के लिए उन्हें शेर-ए-हरियाणा (हरियाणा का शेर) के नाम से जाना जाने लगा। वह 1 980-82 से संसद सदस्य बने और 1982 और 1 987 के बीच राज्य विधानसभा सदस्य रहे। उन्होंने लोक दल का गठन किया और हरियाणा संघर्ष समिति के बैनर के तहत, नीया युद्ध शुरू किया, और बेहद लोकप्रिय हो गए जनता के बीच 1987 के राज्य चुनावों में, देवीलाल की अगुआई वाली गठबंधन ने 90 सदस्यीय घर में 85 सीटें जीती थी। कांग्रेस ने अन्य पांच सीटें जीती देवीलाल दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1 9 8 9 के संसदीय चुनाव में, वह एक साथ चुने गए, दोनों सीकर, राजस्थान और रोहतक, हरियाणा से। ज़ुबान के पक्के थे देवीलाल चौधरी देवीलाल के प्रपौत्र और हिसार से लोकसभा सदस्य दुष्यंत चौटाला बताते हैं, "संसद में अभी भी कम से कम 50 ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने चौधरी देवीलाल के साथ काम किया है, उनसे बात होती तो ये लोग बताते हैं कि 1989 में इन लोगों का मुंह खुला का खुला रह गया था जब देवीलाल ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपनी जगह नेता बनाया था. हालांकि लोग इस बात की भी प्रशंसा करते हैं कि देवीलाल अपनी जुबान के पक्के थे. उन्होंने जो किया था वो कोई आम बात तो नहीं ही थी." जब काल-कोठरी में भी नहीं घबराएं चौ. देवीलाल आपातकाल के समय चौ. देवीलाल को जब गिर तार कर महेन्द्रगढ़ के किले में बंद कर दिया गया था। एक छोटी सी कालकोठरी में जहां दो व्यक्ति भी नहीं सो सकते, मेरे दादा जी चौधरी देवीलाल, मनीराम बागड़ी, सहित तीन व्यक्तियों को कोठरी में बंदी बनाया गया। ऐसे में संतरी शाम को 6 बजे कोठरी में ताला लगाता था और प्रात: 9 बजे ताला खोलता था। एक साथ कोठरी में दो व्यक्ति को लेटना पड़ता था तथा तीसरा व्यक्ति कपड़े से हवा झोलता था, क्योंकि कोठरी में जहां एक ओर दो ही व्यक्तियों के लेटने की व्यवस्था थी, वहीं दूसरी ओर मोटे-मोटे मच्छरों की भरमार थी। बिजली-पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। कोठरी में केवल एक ही छेद था, जिसमें से रोशनी आती थी। इतना ही नहीं वहां पर शौचालय की भी सुविधा नहीं थी। मेरे दादा जी चौ. देवीलाल ऐसे हालात में कभी भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में मुर्झाए नहीं और उन्होंने विपरित से विपरित परिस्थितियों में संघर्ष करने की प्रेरणा दी। आज उसी प्रेरणा को आत्मसात कर हम संघर्ष की राह पर हैं। हमें विश्वास है कि एक दिन हमारा संघर्ष रंग लाएगा और हरियाणा की जनता को न्याय मिलेगा। ( 10 ) 12 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3