इन्द्र विद्यावाचस्पति जीवनी - Biography of Indra Vidyawacspti in Hindi Jivani Published By : Jivani.org श्री इन्द्र विद्यावाचस्पति का जन्म भारतवर्ष के नवजागरण या पुनर्जागरण युग में जालंधर शहर में 9 नवम्बर, 1889 को हुआ था। पंडितजी का साहित्यिक जीवन सन् 1910 से प्रारंभ होता है। उन दिनों गुरुकुल से सद्धर्म शीर्षक से एक पत्र निकला करता था। इन्होंने 'सद्धर्म प्रचारक' पत्र के माध्यम से अपनी पत्रकारिता की रुचि को और बढ़ाया। सद्धर्म प्रचारक में इन्द्रजी कुछ ऐसी मार्मिक टिप्पणी लिखते थे, जिन्हें पढ़कर गणेशंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकार भी इन्द्रजी से भेंट करने गुरुकुल पधारे । पंडित इन्द्रजी ने कुल मिलाकर 32 वर्ष तक हिन्दी-पत्रकारिता की सेवा करते हुए उसकी अभिवृद्धि में बड़ा योगदान किया। डॉ0 राजेन्द्रप्रसाद ने कहा था- "मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि पंडित इन्द्रजी द्वारा संचालित 'वीर अर्जुन' की सेवाएं सर्वविदित हैं।' राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, मैथिलीशरण गुप्त आदि ने आशीर्वाद देते हुए इन्द्रजी को देश के मूर्धन्य पत्रकार के रूप में स्थान दिया। उस समय हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में दो ही व्यक्ति थे जो लोकप्रियता प्राप्त कर सके, पहले पंडित इन्द्र विद्यावाचस्पति और दूसरे गणेशंकर विद्यार्थी। 71 वर्ष की आयु में इन्द्रजी का निधन 23 अगस्त, 1960 को हुआ। पंडित इन्द्र विद्यावाचस्पति की कृतियों में प्रमुख हैं- नेपोलियन बोनापार्ट की जीवनी (जीवन चरित्र), उपनिषदों की भूमिका (दर्शन एवं भारतीय संस्कृति), संस्कृत साहित्य का ऐतिहासिक अनुशीलन (साहित्य), राष्ट्रीयता का मूल मन्त्र (राजनीति), अपराधी कौन (उपन्यास), शाहआलम की आंखें (उपन्यास), ज़मींदार (उपन्यास), भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास और आर्य समाज का इतिहास ( इन्द्र जी ने शिक्षा तथा साहित्य सृजन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। शिक्षा के क्षेत्र में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान गुरुकुल कांगड़ी का संचालन एवं मार्गदर्शन है। इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में कार्य करते हुए उन्होने गुरुकुल की उपाधियों को केन्द्र एवं राज्य सरकारों से मान्यता प्रदान कराने का स्तुत्य एवं सफल कार्य किया। गुरुकुल में हिन्दी माध्यम से तकनीकी विषयों की शिक्षण की व्यवस्था करके इन्होने हिन्दी की अमूल्य सेवा की। कृतियाँ ये इतिहास के गम्भिर अध्येता थे। अत: इनकी इतिहास-विषयक रचनाएं अत्यन्त प्रामाणिक एवं उच्च श्रेणी की मानी गयीं हैं। 'भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उदय और अन्त', 'मुगल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण', 'मराठों का इतिहास' उनकी सर्वप्रसिद्ध रचनाएँ हैं। धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्रितियों में 'आर्यसमाज का इतिहास', 'उपनिषदों की भूमिका' तथा 'संस्कृत्ति का प्रवाह' उल्लेखनीय हैं। 'शाह आलम की आँखें' प्रतिनिधि ऐतिहासिक उपन्यास है तो 'नैपोलियन बोनापार्ट की जीवनी', 'महर्षि दयानन्द का जीवन-चरित' उल्लेखनीय जीवन-ग्रन्थ हैं। इन्द्र जी का भाषा पर पूरा अधिकार था। इनकी शैली में सहज प्रवाह है। वस्तुस्थिति का मार्मिक चित्रण करने की अद्भुत क्षमता है। इनकी कृतियाँ हिन्दी का गौरव हैं। राजनीति तथा पत्रकारिता इन्द्र जी सार्वजनिक कार्यों में भी शुरू से ही रुचि लेने लगे थे। कांग्रेस संगठन में सम्मिलित होकर उन्होंने दिल्ली को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। 1920-1921 में उनकी गणना दिल्ली के प्रमुख कांग्रेसजनों में होती थी। गुरुकुल के वातावरण के कारण वे 'आर्य समाज' से प्रभावित थे। बाद में उनके ऊपर 'हिन्दू महासभा' का भी प्रभाव पड़ा। पत्रकार के रूप में उन्होंने दिल्ली के 'विजय' और 'सर्वधर्म प्रचारक' का सम्पादन किया। उनको सर्वाधिक ख्याति 'वीर अर्जुन' के सम्पादक के रूप में मिली। वे इस पत्र के 25 वर्ष तक सम्पादक रहे। 'विजय' के एक अग्रलेख के कारण विदेशी सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया था। 'नमक सत्याग्रह' के समय भी उन्होंने जेल की सज़ा भोगी। रचनाएँ इन्द्र विद्यावाचस्पति ने अनेक पुस्तकों की भी रचना की। उनकी कुछ कृतियाँ निम्नलिखित हैं- भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उदय और अन्त मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण मराठों का इतिहास उपनिषदों की भूमिका आर्य समाज का इतिहास स्वराज्य और चरित्र निर्माण गांधी जी से मतभेद इन्द्र जी की मान्यता थी कि व्यक्तिगत जीवन में सत्य और अहिंसा का स्थान सर्वोपरि है, किन्तु अहिंसा को राजनीति में भी विश्वास के रूप में स्वीकार करने के पक्ष में वे नहीं थे। इसलिए उन्होंने गांधी जी से मतभेद होने के कारण 1941 में कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया था। देहान्त सन 1960 ई. में इन्द्र विद्यावाचस्पति का देहान्त हुआ। ( 16 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0