राज कपूर जीवनी - Biography of Raj Kapoor in Hindi Jivani Published By : Jivani.org राज कपूर (१९२४-१९८८) प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता एवं निर्देशक थे। नेहरूवादी समाजवाद से प्रेरित अपनी शुरूआती फिल्मों से लेकर प्रेम कहानियों को मादक अंदाज से परदे पर पेश करके उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए जो रास्ता तय किया, इस पर उनके बाद कई फिल्मकार चले। भारत में अपने समय के सबसे बड़े 'शोमैन' थे। सोवियत संघ और मध्य-पूर्व में राज कपूर की लोकप्रियता दंतकथा बन चुकी है। Raj Kapoor राजकपूर का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर में ढक्की मुनव्वर शाह में एक हिन्दू पंजाबी परिवार में हुआ था | राजकपूर के जन्म के समय पेशावर भारत का ही अंग था | Raj Kapoor राजकपूर के पिता का नाम पृथ्वीराज कपूर और माता का नाम रामसरणी देवी था | राजकपूर के पिताजी पृथ्वीराज कपूर भी एक महान अभिनेता थे जिन्हें हिंदी सिनेमा का पितामह माना जाता है | पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर और दादाजी केशवमल कपूर थे | पृथ्वीराज कपूर से कपूर खानदान की शुरवात होती है जो वर्तमान में हिंदी सिनेमा में सबसे बड़ा फ़िल्मी खानदान है | पृथ्वीराज कपूर ने भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा में सहायक अभिनेता के तौर पर अभिनय किया था | इससे पहले पृथ्वीराज कपूर ने भारत की नौ मूक फिल्मो में भी काम किया था | पृथ्वीराज कपूर का सबसे अच्छा अभिनय “सिकन्दर ” 1941 फिल्म में माना जाता है | 1944 में उन्होंने पृथ्वी थिएटर की स्थापना की थी और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में मुगले-आजम और “कल आज और कल ” जैसी बेहतरीन फिल्मो में भी अभिनय किया था | सन 1929 में जब पृथ्वीराज कपूर मुंबई आए, तो उनके साथ मासूम राज कपूर भी आ गए। पृथ्वीराज कपूर सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। राज कपूर को उनके पिता ने साफ़ कह दिया था कि राजू, नीचे से शुरुआत करोगे तो ऊपर तक जाओगे। राज कपूर ने पिता की यह बात गाँठ बाँध ली और जब उन्हें सत्रह वर्ष की उम्र में रणजीत मूवीटोन में साधारण एप्रेंटिस का काम मिला, तो उन्होंने वजन उठाने और पोंछा लगाने के काम से भी परहेज नहीं किया। काम के प्रति राज कपूर की लगन पंडित केदार शर्मा के साथ काम करते हुए रंग लाई, जहाँ उन्होंने अभिनय की बारीकियों को समझा। एक बार राज कपूर ने ग़लती होने पर केदार शर्मा से चाँटा भी खाया था। उसके बाद एक समय ऐसा भी आया, जब केदार शर्मा ने अपनी फ़िल्म 'नीलकमल' (1947) में मधुबाला के साथ राज कपूर को नायक के रूप में प्रस्तुत किया। नीलकमल : केदार शर्मा उस समय के नामचीन निर्देशकों में से एक थे। केदार शर्मा ने राज कपूर को क्लैपर ब्वॉय के रूप में भरती कर किया। एक दिन की बात है किसी शॉट को फ़िल्माने के दौरान राज कपूर ने क्लैप को इतनी ज़ोर से टकराया कि अभिनेता की नकली दाढ़ी उसमें फंसकर बाहर आ गई। केदार शर्मा ने गुस्से में राज कपूर को जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया। भारत सरकार ने राज कपूर को मनोरंजन जगत में उनके अपूर्व योगदान के लिए 1971 में पद्मभूषण से विभूषित किया था। साल 1987 में उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा 1960 में फिल्म 'अनाड़ी' और 1962 में 'जिस देश में गंगा बहती है' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था। 1965 में 'संगम', 1970 में 'मेरा नाम जोकर' और 1983 में 'प्रेम रोग' के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था। शोमैन राज कपूर का दुनिया की नजरों से ओझल हो जाना भी सामान्य घटनाओं से अलहदा रहा। दो मई, 1988 को एक पुरस्कार समारोह में उन्हें भीषण दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद वह एक महीने तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे। आखिरकार दो जून 1988 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। भारतीय सिनेमा के इतिहास में राज कपूर का योगदान उन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनके बाद परिवार की चार पीढ़ियां लगातार सिनेमा जगत में सक्रिय रही हैं और मनोरंजन के क्षेत्र में योगदान दे रही हैं। कपूर परिवार एक ऐसा परिवार है, जिसमें दादा साहेब फालके पुरस्कार दो बार आया। सन् 1972 में राज के पिता पृथ्वीराज कपूर को भी यह सर्वोच्च पुरस्कार मिला था। राज कपूर और नर्गिस 1940-1960 के दशक की बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत और पॉपुलर जोड़ियों में से एक है। ये दोनों स्टार्स सिर्फ़ रील लाइफ में नहीं बल्कि रियल लाइफ में भी रोमांटिक कपल थे। वहीं उनकी ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री दर्शकों ने खूब पसंद की। नर्गिस ने राजकपूर के साथ कुल 16 फिल्में की, जिनमें से 6 फिल्में आर.के.बैनर की ही थी। इस फेहरिस्त में आग, बरसात, अंदाज़, आवारा, आह, श्री 420, जागते रहो और चोरी-चोरी जैसी यादगार फिल्में शामिल हैं। लेखक टीजेएस जॉर्ज की किताब 'द लाइफ एंड टाइम ऑफ नर्गिस' के मुताबिक दोनों की पहली मुलाकात का ज़िक्र करते हुए नर्गिस ने अपनी दोस्त नीलम को बताया- नीली आंखों वाला एक मोटा-सा ‘पिंकी’ घर आया था। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान नर्गिस और राज एक दूसरे के बेहद करीब हो गए। नरगिस भी राज को पसंद करने लगीं थी। उन्होंने अपनी दोस्त नीलम से कहा था कि पिंकी अब मेरे साथ तरोताज़ा दिखने लगा है। लेखिका मधु जैन की किताब 'द कपूर्स' के मुताबिक – जब बरसात बन रही थी , नर्गिस पूरी तरह से राज कपूर के लिए समर्पित हो चुकी थीं। यहां तक कि जब स्टूडियो में पैसे की कमी हुई तो नर्गिस ने अपनी सोने की चूड़ियां बेचीं। उन्होंने दूसरे निर्माताओं की फिल्मों में काम करके आर.के फिल्म्स की खाली तिजोरी को भरने का काम किया। आर. के वाकई नर्गिस-राजकपूर का एक बैनर था। वह एक साझेदार थी। राज कपूर को संगीत की बहुत अच्छी समझ थी| साथ ही साथ वे यह भी अच्छी तरह से जानते थे कि किस तरह के संगीत को लोग पसंद करते हैं यही कारण है कि आज तक उनके फिल्मों के गाने लोकप्रिय हैं। संगीतकार शंकर जयकिशन, जो कि लगातार 18 वर्षों तक नंबर 1 संगीतकार रह चुके हैं, को उन्होंने ही अपनी फिल्म बरसात में पहली बार संगीत निर्देशन का अवसर दिया था। फिल्म बरसात से राज कपूर ने अपनी फल्मों के गीत संगीत के लिये एक प्रकार से एक टीम बना लिया था जिसमें उनके साथ गीतकार शैलेन्द्र तथा हसरत जयपुरी, गायक मुकेश और संगीतकार शंकर जयकिशन शामिल थे| ये सभी के एक दूसरे के अच्छे मित्र थे और लगभग 18 वर्षों के एक बहुत लंबे अरसे तक एक साथ मिल कर काम करते रहे| ( 2 ) 5 Votes have rated this Naukri. 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